रोजगार में धमेन्द्र आप देखा है उसने मुझे लिया। 8 साल के बच्चे से लेकर के 80 साल के बुजुर्ग तक आप किसी से भी पूछ लीजिए साफ शब्दों में हर कोई एक ही जुबान में यही बात कह रहा है कि उत्तर प्रदेश की पुलिस ने फर्जी एनकाउंटर किया है। ये एनकाउंटर नहीं बल्कि मर्डर है और सीधे सीधे तौर पर बड़े बड़े नेताओं को बचाने के लिए किया है। साफ तौर पर ये हर कोई कह रहा है और जो कोई ये कह भी रहा है कि हां उत्तर प्रदेश की पुलिस ने ठीक किया उसका एनकाउंटर हो जाना चाहिए था उसके मन के अंदर भी ये सवाल है कि वाकई उत्तर प्रदेश की पुलिस ने आनन फानन में इसका एनकाउंटर इसलिए कर दिया क्योंकि वह बड़े बड़े नेताओं को बचाना चाहती थी लेकिन तमाम वो सवाल जो कि उत्तर प्रदेश पुलिस पर उठ रहे हैं और उसके बाद में उत्तर प्रदेश पुलिस कहीं पर भी इसको ले करके नहीं ठहरेगी।
अगर ये मामला हाईकोर्ट में जाता है सुप्रीम कोर्ट में जाता है कहीं पर भी ये मामला पहुंचता है तो उत्तर प्रदेश की पुलिस जो है वो फंस चुकी है। पूरे पैसे अपने ही एनकाउंटर में और दूसरा उस सोच को भी एक्सपोज करेंगे जो सोची कहती कि उत्तर प्रदेश की पुलिस ने जो है वो ठीक किया। ऐसे लोगों का एनकाउंटर ही कर देना चाहिए उस सोच को भी एक्सपोज करेंगे लेकिन सबसे पहले सीधी लाइन में आपको बताते हैं कि किसी भी अपराधी के साथ में और आतंकवादी विकास दुबे के साथ में हमारी बिल्कुल भी सहानुभूति नहीं है। ऐसे अपराधी के साथ में कड़ी से कड़ी सख्त से सख्त जो है वो जो भी कार्रवाई हो सकती है वो होनी चाहिए लेकिन हमारा सवाल जो है वो सिस्टम से है। हमारा सवाल सिस्टम के तरीके पर है।
कुछ महत्वपूर्ण सवाल है सीधे सवाल जो आपके सामने रखेंगे और उसके बाद में साफ हो जाएगा कि किस तरह से उत्तर प्रदेश की पुलिस ने खुद गुंडागर्दी की है और खुद जो है एक गैंगस्टर जिसका काम क्या है उत्तर प्रदेश की पुलिस ने सबसे पहला सवाल जो मीडिया का काफिला इस काफिले के एसटीएफ के काफिले का पीछा कर रहा था उसको महज दो किलोमीटर पहले घटनास्थल से एनकाउंटर स्थल से दो किलोमीटर पहले क्यों रोक दिया गया। दूसरा सवाल किस तरह से विकास दूबे की गाड़ी जो है वो बदली गई है। टाटा सफारी की गाड़ी में सफर कर रहा था टाटा सफारी की कार से फिर महिन्द्रा की टीवी थ्री हंड्रेड शिकार बन जाती है। तीसरा सवाल विकास की गाड़ी को कोई टूट फूट का निसान नहीं है ना ही कुछ हिस्सा टूटा है ना ही कोई जो है वो और तरह से गाड़ी जो छतिग्रस्त हुई है केवल आगे का कुछ बम्पर का जो हिस्सा है वो केवल छतिग्रस्त हुआ है। चौथा सवाल है विकास के पांव में रोड लगी है।
विकास की पहले को एक मुठभेड़ के दौरान जो है उसके पांव में रोड़ लगी थी जिसको जो गांव देहात की भाषा में कहते हैं कि सरिया डला हुआ था उसके बाद विकास जो है वो लंगड़ा कर के चलता है कि लंगड़ा करके चलने वाला व्यक्ति एसटीएफ के जवानों के सामने स्पेशल टास्क फोर्स के जवानों के सामने आखिरकार कैसे भाग जाता है। सबसे बड़ा सवाल ये है और पांचवा सवाल ये है जो सबसे चौकाने वाला सवाल है। पांचवा सवाल ये है कि डॉक्टरों ने खुद बताया है कि विकास दूबे के सीने और हाथों में गोलियां लगी है तो सामने की तरफ से उसको गोलियां कैसे लगी। क्या विकास दुबे पुलिस की तरफ़ भाग रहा था या विकास हुए उल्टे पांव करके रिवर्स में भाग रहा था। छठा सवाल ये है कि गए एसटीएफ की तरफ से उत्तप्रदेश पुलिस की तरफ से कहा गया है कि गाय और भैसों का झुंड आ गया था और जिसकी वजह से ड्राइवर जो है वो लंबी थका दूरी टैकर के आ रहा था इसलिए उसको थकान हो गयी और वो संभाल नहीं पाया।
सबसे बड़ी बात तो ये है कि उसी गाड़ी के सामने गाय और भैंस का झुण्ड कैसे आता है और अन्य गाड़ियों के सामने नहीं आता है और ये ऐसे केस का स्पेशल टास्क फोर्स का ऐसा कौन सा नौजवान था जिसको 10 12 घंटे की गाड़ी चलाने में जुटे उसको थकान हो गई। सबसे बड़ा सवाल ये है अगला सवाल ये है कि कार जो है अगर पुलिस की मान भी ले 1 से दिन भर के लिए मान भी लें कि एक गाय भैस का झुंड जो है वो रोड पर आ जाता है और उसको अचानक ब्रेक लगाने पड़ते हैं और इसी ब्रेक में गाड़ी पलट जाती है तो यानी गाड़ी जो है वो 80 किलोमीटर या सौ किलोमीटर की प्रतिघंटा की रफ्तार से चल रही होगी तो ऐसे में अगर गाड़ी पलटती है तो गाड़ी कई किलोमीटर तक भी जो है या सो मिली 100 मीटर 200 मीटर 500 मीटर तक जो है और रगड़ आती है अपने आपको तो गाड़ी का रगड़ने का कहीं पर कोई निशान क्यों नहीं है और अगला सवाल ये है कि किस तरह से अगर ब्रेक भी लगाए जाते हैं तो आपने भी देखा होगा अब भी गाड़ी चलाते हैं मोटरसाइकिल चलाते हैं तो अगर अचानक से ब्रेक लगाते हैं तो सड़क पर उस टायर के घिसने का निशान बन जाता है लेकिन ऐसा कोई निशान नहीं था ना ही टायर घिसने का निशान था ना ही गाड़ी रगड़ने का निशान था।
अगला सवाल है कि पुलिस के अधिकारियों में जो बयान पुलिस के अधिकारियों के ज्वारे हैं उनमें इतना अंतर क्यों है। आईजी मोहित अग्रवाल कुछ और कह रहे हैं और उत्तर प्रदेश के डीआईजी जो है वो कुछ ओर है और कह रहे हैं पुलिस के अधिकारी जो है वो कह रहे हैं कि कुछ अधिकारी जो है वो कह रहे हैं कि पुलिस के जो एसटीएफ के जो चार जवान घायल हुए। वह चार जवान ऐक्सिडेंट की वजह से घायल हुए हैं। वहीं पुलिस के कुछ अधिकारी कह रहे हैं कि ये एनकाउंटर में उनको भी गोली लगी है और इसके लिए जो है वो घायल हुए हैं। पुलिस के अधिकारियों के बीच में ही एक राय नहीं है। अगला सवाल है कि अगर भागना ही होता तो वो फिर उज्जैन में आकर के सरेंडर क्यों करता।
जो व्यक्ति उज्जैन में आता है और बकायदा उज्जैन का एक वीडियो जो है वो रिलीज किया गया है इस वीडियो में आप देखें कि किस तरह से ये उज्जैन मंदिर में अकेला आराम से अपने बैग को लटका करके धीरे धीरे जा रहा है और लंगड़ाते हुए जा रहे हैं पेरेज से बताए उसके पैर में रॉड लगी हुई है। ये लंगड़ाते हुए जा रहा है और उसके बाद में वहां पर अकेला बिल्कुल अकेला। इसको कोई नहीं रोक राय बिल्कुल अकेला आराम से जाकर के दर्शन करता है तो फिर आखिरकार ऐसा व्यक्ति जो कि मीडिया चैनलों के सामने कुछ ला कर कहता है कि मैं विकास दुबे कानपुर वाला यानि उसको खुद को मालूम था कि वे उत्तरप्रदेश पुलिस जो है उसका एनकाउंटर करने वाली है तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि जो व्यक्ति उज्जैन जा करके अपनी खुद की गिरफ्तारी देता है वो व्यक्ति फिर क्यों जो है वो भागेगा पुलिस से एनकाउंटर में मरेगा और अगला सवाल ये है कि उज्जैन के एडिशनल एसपी रूपेश द्विवेदी वो कह रहे है कि आई हो। विकास दुबे कानपुर जिंदा न पहुंचे। सुनिये कि किस तरह से एक एडिश्नल रेंज का अधिकारी इस आशय की बातें कर रहा है। क्या ये पहले से ही सबको सब कुछ मालूम था कि क्या होने वाला है। सुनिए एक बार रुपेश द्विवेदी का ये बयान।
ये तमाम वो सवाल हैं जिन सवालों को देख करके जिन सवालों पर ध्यान लगा करके कोई भी आम व्यक्ति ये तय कर सकता है कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने ये एनकाउंटर किया है या ये मर्डर किया है ये गैंगस्टर की तरीके से उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्रवाई दिखती है। मैं इसको पूरे जिम्मेदारी के साथ मैं कहता हूं कि विकास दुबे आतंकवादी जो काम कर रहा था वही काम उत्तर प्रदेश की पुलिस की तरफ से होता हुआ दिखाई दे रहा है। अगर इन तमाम सवालों पर अगर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्रवाई जो है वो किसी गैंगस्टर से कम नजर नहीं आती है। यह सीधे तौर पर उत्तर प्रदेश की पुलिस जो है ये संदेश दे रही है कि अगर आप पुलिस को गोली मारेंगे तो आप भी पुलिस की गोली से मारे जाएंगे।
ये गैंगस्टर की भाषा होती है ये पुलिस की कानून की कानून व्यस्था की भाषा नहीं कही जा सकती है। पर अब बात करेंगे उस सोच के बारे में जो सोच कहती है कि उत्तर प्रदेश की पुलिस ने बिल्कुल ठीक किया और विकास सूबे का एकदम से एनकाउंटर जो हुआ है वो बिल्कुल सही है। ऐसे अपराधियों को एकदम देखते ही ठोक देना चाहिए इसके बारे में बात करें। सबसे पहले अगर विकास दूबे के इस पूरे प्रकरण पर इस विकास दुबे के पूरे काण्ड पर अगर आप नजर डालेंगे तो जहां पर जो विकास दूबे का जो एनकाउंटर हुआ है इससे हमें फायदा कम और नुकसान ज्यादा हुआ है।
वो इसलिए क्योंकि अगर विकास दुबे से पूछताछ की जाती तो पूरा नेटवर्क एक्सपोज होता। बड़ी बड़ी मछलियां जो है वो जाल में आती बड़े बड़े मंत्री जो है वो फंस जाते। बड़े बड़े सरकार जो है वो गिर जाती लेकिन विकास दुबे का एनकाउंटर कर दिया गया सारे सबूतों को दफना दिया गया और सारे राज जो है वो खतम हो गए बेपर्दा होने से पहले ही अब बात करते की वो सोच की जो क्या सोच वो सही है अगर ये सोच सही है। अगर आपकी ये सोच सही है कि उत्तर प्रदेश पुलिस के आठ जवान शहीद किए थे उसके बाद में विकास दुबे के साथ में भी ऐसा ही होना चाहिए और विकास दुबे को भी जिस से उत्तर प्रदेश की पुलिस ने एनकाउंटर करके मारा है वो ठीक किया है तो अगर आपकी सोच ये है तो फिर आपको लगना चाहिए कि जो नक्सली जो कर रहे हैं वो भी फिर ठीक कर रहे है।
जम्मू कश्मीर में जो जवान बंदूक अपने हाथ में उठा लिए है क्योंकि उनके साथ में उनके परिवार के साथ में भी कहीं न कहीं गलत हुआ है और उसी गलत का बदला लेने के लिए उन नौजवानों ने भी अगर जो बंदूक उठाई है तो फिर इसका मतलब मूवी ठीक कर रहे हैं। आपको तय करना होगा और आपको अपनी मानसिकता को स्वस्थ करके सोचना होगा कि आप किस तरह का समाज बनाना चाहते हैं। आप किस तरह का समाज बनाना चाहते है जा पर गोली का बदला गोली से लिया जाए या जहां पर गोली का बदला सविधान से लिया जाए। क्यों न अगर एक फास्ट ट्रैक कोर्ट का जो है वो निर्माणकर्ता और तीन महीने के अंदर ये छह महीने के अंदर इसको फांसी होती तो जो तमाम राज इसके अंदर मौजूद थे वो तमाम राज बाहर आते बेपर्दा होते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और गैंगस्टर की भांति उत्तप्रदेश की पुलिस ने काम किया है।
गोली का बदला गोली हमारा संविधान नहीं कहता है गोली का बदला गोली हमारा कानून नहीं कहता है और ऐसे में ये तमाम सवाल ये तय करते हैं कि उत्तर प्रदेश पुलिस की का राई रही है। वह गैंगस्टर एक आतंकवादी की तरह ही रही है वो कानून जो है वो पुलिस ने पूरी तरह से ताक पर रख दिया और कानून की धज्जियां उड़ाते हुए विकास दुबे का एनकाउंटर किया। मैं फिर से आखरी में वही बात दोहरा रहा हूं कि हमारी विकास दुबे आतंकवादी विकास दुबे के साथ। कोई सहानुभूति नहीं है लेकिन सिस्टम पर सवाल उठाना जरूरी है जब सिस्टम गलत हो। अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो कल कोई सिस्टम इतना हावी हो जाएगा।
कल कोई सिस्टम जो है वह आपके ऊपर भी अगर इसी तरह की तानाशाही करेगा तो फिर आप भी आवाज नहीं उठा पाएंगे। आप भी आवाज नहीं उठा पाएंगे इसीलिए जहां पर भी जो चीज गलत हो जहां पर भी जो व्यक्ति गलत हो जहां पर भी जो प्रशासन गलत हो जहां पर भी जो सरकार गलत हो जहां पर जो पार्टी गलत हो उसको गलत कहना जरूरी है क्योंकि गलत को गलत कहना ही सही है। इस खबर को लेकर काफी जो किराए हों नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी राय जरूर ने उसी तरह की तमाम खबरों के लिए बोले मुझे वो सब्सक्राइबर धन्यवाद। इस खबर को भी लाइक करें। शेयर करें। और ओला ने जिले की सभी खबरें अपने मोबाइल फोन पर सबसे पहले देखी गई। अभी केन्द्र। सक्रिय तरीन। उद्धरण की। जरूरत।
अगर ये मामला हाईकोर्ट में जाता है सुप्रीम कोर्ट में जाता है कहीं पर भी ये मामला पहुंचता है तो उत्तर प्रदेश की पुलिस जो है वो फंस चुकी है। पूरे पैसे अपने ही एनकाउंटर में और दूसरा उस सोच को भी एक्सपोज करेंगे जो सोची कहती कि उत्तर प्रदेश की पुलिस ने जो है वो ठीक किया। ऐसे लोगों का एनकाउंटर ही कर देना चाहिए उस सोच को भी एक्सपोज करेंगे लेकिन सबसे पहले सीधी लाइन में आपको बताते हैं कि किसी भी अपराधी के साथ में और आतंकवादी विकास दुबे के साथ में हमारी बिल्कुल भी सहानुभूति नहीं है। ऐसे अपराधी के साथ में कड़ी से कड़ी सख्त से सख्त जो है वो जो भी कार्रवाई हो सकती है वो होनी चाहिए लेकिन हमारा सवाल जो है वो सिस्टम से है। हमारा सवाल सिस्टम के तरीके पर है।
कुछ महत्वपूर्ण सवाल है सीधे सवाल जो आपके सामने रखेंगे और उसके बाद में साफ हो जाएगा कि किस तरह से उत्तर प्रदेश की पुलिस ने खुद गुंडागर्दी की है और खुद जो है एक गैंगस्टर जिसका काम क्या है उत्तर प्रदेश की पुलिस ने सबसे पहला सवाल जो मीडिया का काफिला इस काफिले के एसटीएफ के काफिले का पीछा कर रहा था उसको महज दो किलोमीटर पहले घटनास्थल से एनकाउंटर स्थल से दो किलोमीटर पहले क्यों रोक दिया गया। दूसरा सवाल किस तरह से विकास दूबे की गाड़ी जो है वो बदली गई है। टाटा सफारी की गाड़ी में सफर कर रहा था टाटा सफारी की कार से फिर महिन्द्रा की टीवी थ्री हंड्रेड शिकार बन जाती है। तीसरा सवाल विकास की गाड़ी को कोई टूट फूट का निसान नहीं है ना ही कुछ हिस्सा टूटा है ना ही कोई जो है वो और तरह से गाड़ी जो छतिग्रस्त हुई है केवल आगे का कुछ बम्पर का जो हिस्सा है वो केवल छतिग्रस्त हुआ है। चौथा सवाल है विकास के पांव में रोड लगी है।
विकास की पहले को एक मुठभेड़ के दौरान जो है उसके पांव में रोड़ लगी थी जिसको जो गांव देहात की भाषा में कहते हैं कि सरिया डला हुआ था उसके बाद विकास जो है वो लंगड़ा कर के चलता है कि लंगड़ा करके चलने वाला व्यक्ति एसटीएफ के जवानों के सामने स्पेशल टास्क फोर्स के जवानों के सामने आखिरकार कैसे भाग जाता है। सबसे बड़ा सवाल ये है और पांचवा सवाल ये है जो सबसे चौकाने वाला सवाल है। पांचवा सवाल ये है कि डॉक्टरों ने खुद बताया है कि विकास दूबे के सीने और हाथों में गोलियां लगी है तो सामने की तरफ से उसको गोलियां कैसे लगी। क्या विकास दुबे पुलिस की तरफ़ भाग रहा था या विकास हुए उल्टे पांव करके रिवर्स में भाग रहा था। छठा सवाल ये है कि गए एसटीएफ की तरफ से उत्तप्रदेश पुलिस की तरफ से कहा गया है कि गाय और भैसों का झुंड आ गया था और जिसकी वजह से ड्राइवर जो है वो लंबी थका दूरी टैकर के आ रहा था इसलिए उसको थकान हो गयी और वो संभाल नहीं पाया।
सबसे बड़ी बात तो ये है कि उसी गाड़ी के सामने गाय और भैंस का झुण्ड कैसे आता है और अन्य गाड़ियों के सामने नहीं आता है और ये ऐसे केस का स्पेशल टास्क फोर्स का ऐसा कौन सा नौजवान था जिसको 10 12 घंटे की गाड़ी चलाने में जुटे उसको थकान हो गई। सबसे बड़ा सवाल ये है अगला सवाल ये है कि कार जो है अगर पुलिस की मान भी ले 1 से दिन भर के लिए मान भी लें कि एक गाय भैस का झुंड जो है वो रोड पर आ जाता है और उसको अचानक ब्रेक लगाने पड़ते हैं और इसी ब्रेक में गाड़ी पलट जाती है तो यानी गाड़ी जो है वो 80 किलोमीटर या सौ किलोमीटर की प्रतिघंटा की रफ्तार से चल रही होगी तो ऐसे में अगर गाड़ी पलटती है तो गाड़ी कई किलोमीटर तक भी जो है या सो मिली 100 मीटर 200 मीटर 500 मीटर तक जो है और रगड़ आती है अपने आपको तो गाड़ी का रगड़ने का कहीं पर कोई निशान क्यों नहीं है और अगला सवाल ये है कि किस तरह से अगर ब्रेक भी लगाए जाते हैं तो आपने भी देखा होगा अब भी गाड़ी चलाते हैं मोटरसाइकिल चलाते हैं तो अगर अचानक से ब्रेक लगाते हैं तो सड़क पर उस टायर के घिसने का निशान बन जाता है लेकिन ऐसा कोई निशान नहीं था ना ही टायर घिसने का निशान था ना ही गाड़ी रगड़ने का निशान था।
अगला सवाल है कि पुलिस के अधिकारियों में जो बयान पुलिस के अधिकारियों के ज्वारे हैं उनमें इतना अंतर क्यों है। आईजी मोहित अग्रवाल कुछ और कह रहे हैं और उत्तर प्रदेश के डीआईजी जो है वो कुछ ओर है और कह रहे हैं पुलिस के अधिकारी जो है वो कह रहे हैं कि कुछ अधिकारी जो है वो कह रहे हैं कि पुलिस के जो एसटीएफ के जो चार जवान घायल हुए। वह चार जवान ऐक्सिडेंट की वजह से घायल हुए हैं। वहीं पुलिस के कुछ अधिकारी कह रहे हैं कि ये एनकाउंटर में उनको भी गोली लगी है और इसके लिए जो है वो घायल हुए हैं। पुलिस के अधिकारियों के बीच में ही एक राय नहीं है। अगला सवाल है कि अगर भागना ही होता तो वो फिर उज्जैन में आकर के सरेंडर क्यों करता।
जो व्यक्ति उज्जैन में आता है और बकायदा उज्जैन का एक वीडियो जो है वो रिलीज किया गया है इस वीडियो में आप देखें कि किस तरह से ये उज्जैन मंदिर में अकेला आराम से अपने बैग को लटका करके धीरे धीरे जा रहा है और लंगड़ाते हुए जा रहे हैं पेरेज से बताए उसके पैर में रॉड लगी हुई है। ये लंगड़ाते हुए जा रहा है और उसके बाद में वहां पर अकेला बिल्कुल अकेला। इसको कोई नहीं रोक राय बिल्कुल अकेला आराम से जाकर के दर्शन करता है तो फिर आखिरकार ऐसा व्यक्ति जो कि मीडिया चैनलों के सामने कुछ ला कर कहता है कि मैं विकास दुबे कानपुर वाला यानि उसको खुद को मालूम था कि वे उत्तरप्रदेश पुलिस जो है उसका एनकाउंटर करने वाली है तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि जो व्यक्ति उज्जैन जा करके अपनी खुद की गिरफ्तारी देता है वो व्यक्ति फिर क्यों जो है वो भागेगा पुलिस से एनकाउंटर में मरेगा और अगला सवाल ये है कि उज्जैन के एडिशनल एसपी रूपेश द्विवेदी वो कह रहे है कि आई हो। विकास दुबे कानपुर जिंदा न पहुंचे। सुनिये कि किस तरह से एक एडिश्नल रेंज का अधिकारी इस आशय की बातें कर रहा है। क्या ये पहले से ही सबको सब कुछ मालूम था कि क्या होने वाला है। सुनिए एक बार रुपेश द्विवेदी का ये बयान।
ये तमाम वो सवाल हैं जिन सवालों को देख करके जिन सवालों पर ध्यान लगा करके कोई भी आम व्यक्ति ये तय कर सकता है कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने ये एनकाउंटर किया है या ये मर्डर किया है ये गैंगस्टर की तरीके से उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्रवाई दिखती है। मैं इसको पूरे जिम्मेदारी के साथ मैं कहता हूं कि विकास दुबे आतंकवादी जो काम कर रहा था वही काम उत्तर प्रदेश की पुलिस की तरफ से होता हुआ दिखाई दे रहा है। अगर इन तमाम सवालों पर अगर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्रवाई जो है वो किसी गैंगस्टर से कम नजर नहीं आती है। यह सीधे तौर पर उत्तर प्रदेश की पुलिस जो है ये संदेश दे रही है कि अगर आप पुलिस को गोली मारेंगे तो आप भी पुलिस की गोली से मारे जाएंगे।
ये गैंगस्टर की भाषा होती है ये पुलिस की कानून की कानून व्यस्था की भाषा नहीं कही जा सकती है। पर अब बात करेंगे उस सोच के बारे में जो सोच कहती है कि उत्तर प्रदेश की पुलिस ने बिल्कुल ठीक किया और विकास सूबे का एकदम से एनकाउंटर जो हुआ है वो बिल्कुल सही है। ऐसे अपराधियों को एकदम देखते ही ठोक देना चाहिए इसके बारे में बात करें। सबसे पहले अगर विकास दूबे के इस पूरे प्रकरण पर इस विकास दुबे के पूरे काण्ड पर अगर आप नजर डालेंगे तो जहां पर जो विकास दूबे का जो एनकाउंटर हुआ है इससे हमें फायदा कम और नुकसान ज्यादा हुआ है।
वो इसलिए क्योंकि अगर विकास दुबे से पूछताछ की जाती तो पूरा नेटवर्क एक्सपोज होता। बड़ी बड़ी मछलियां जो है वो जाल में आती बड़े बड़े मंत्री जो है वो फंस जाते। बड़े बड़े सरकार जो है वो गिर जाती लेकिन विकास दुबे का एनकाउंटर कर दिया गया सारे सबूतों को दफना दिया गया और सारे राज जो है वो खतम हो गए बेपर्दा होने से पहले ही अब बात करते की वो सोच की जो क्या सोच वो सही है अगर ये सोच सही है। अगर आपकी ये सोच सही है कि उत्तर प्रदेश पुलिस के आठ जवान शहीद किए थे उसके बाद में विकास दुबे के साथ में भी ऐसा ही होना चाहिए और विकास दुबे को भी जिस से उत्तर प्रदेश की पुलिस ने एनकाउंटर करके मारा है वो ठीक किया है तो अगर आपकी सोच ये है तो फिर आपको लगना चाहिए कि जो नक्सली जो कर रहे हैं वो भी फिर ठीक कर रहे है।
जम्मू कश्मीर में जो जवान बंदूक अपने हाथ में उठा लिए है क्योंकि उनके साथ में उनके परिवार के साथ में भी कहीं न कहीं गलत हुआ है और उसी गलत का बदला लेने के लिए उन नौजवानों ने भी अगर जो बंदूक उठाई है तो फिर इसका मतलब मूवी ठीक कर रहे हैं। आपको तय करना होगा और आपको अपनी मानसिकता को स्वस्थ करके सोचना होगा कि आप किस तरह का समाज बनाना चाहते हैं। आप किस तरह का समाज बनाना चाहते है जा पर गोली का बदला गोली से लिया जाए या जहां पर गोली का बदला सविधान से लिया जाए। क्यों न अगर एक फास्ट ट्रैक कोर्ट का जो है वो निर्माणकर्ता और तीन महीने के अंदर ये छह महीने के अंदर इसको फांसी होती तो जो तमाम राज इसके अंदर मौजूद थे वो तमाम राज बाहर आते बेपर्दा होते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और गैंगस्टर की भांति उत्तप्रदेश की पुलिस ने काम किया है।
गोली का बदला गोली हमारा संविधान नहीं कहता है गोली का बदला गोली हमारा कानून नहीं कहता है और ऐसे में ये तमाम सवाल ये तय करते हैं कि उत्तर प्रदेश पुलिस की का राई रही है। वह गैंगस्टर एक आतंकवादी की तरह ही रही है वो कानून जो है वो पुलिस ने पूरी तरह से ताक पर रख दिया और कानून की धज्जियां उड़ाते हुए विकास दुबे का एनकाउंटर किया। मैं फिर से आखरी में वही बात दोहरा रहा हूं कि हमारी विकास दुबे आतंकवादी विकास दुबे के साथ। कोई सहानुभूति नहीं है लेकिन सिस्टम पर सवाल उठाना जरूरी है जब सिस्टम गलत हो। अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो कल कोई सिस्टम इतना हावी हो जाएगा।
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